UP में दुनिया के सबसे पुराने कार्बन डेटेड बरगद के पेड़ में है संरचनात्मक समस्या, ‘विश्वास’ ने की रक्षा

रामगढ़: उत्तर प्रदेश में नरौरा एटॉमिक पावर प्लांट के स्मॉकिंग टावरों से कुछ किलोमीटर दूर गंगा के किनारे एक छोटे से पहाड़ पर एक बरगद का पेड़ है. पेड़ के पुजारी और संरक्षक इसे सिद्धवारी बुलाते हैं और इसके बारे में बताते हैं कि यह हजारों सालों से अस्तित्व में है, इसकी जड़ें महाभारत से जुड़ी हैं. लेकिन रेडियोकार्बन डेटिंग, हाल ही में रोमानिया की एक टीम के साथ बोटैनिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानि बीएसआई के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि पेड़ अनुमानित 400-500 साल पुराना है.

करंट साइंस पत्रिका के नए संस्करण में एक स्टडी ने भले ही पुजारियों को निराश किया हो, लेकिन सिद्धवारी अब दुनिया का सबसे पुराना बरगद का पेड़ है जिसे वैज्ञानिक रूप से दिनांकित किया गया है. निवासियों का कहना है कि जिस पवित्र उपवन में यह पेड़ रहता है वहां प्रार्थना करने से उनकी सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

पेड़ के संरक्षक के रूप में काम करने वाले पुजारियों में से एक अशोकानंद कहते हैं, “ठीक है, क्या यहां बैठने से ही आपका दिल शांत नहीं हो जाता?”

4,069 वर्ग मीटर से अधिक फैले चंदवा के साथ – यह दुनिया का 10वां सबसे बड़ा बरगद का पेड़ है – यह दो मुख्य तने और चार माध्यमिक जड़ों द्वारा समर्थित है. इसके आधार पर इसकी परिधि 10 मीटर से अधिक मापी जाती है. यह अपने आधार पर निर्मित एक उठे हुए मंच पर 27 मीटर से अधिक लंबा है, जिस पर हिंदू देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर बनाए गए हैं. इसकी शाखाओं पर पवित्र घंटियां लटकी हुई हैं.

पवित्र सिद्धवारी | मोहना बसु, दिप्रिंट

पेड़ आमतौर पर एकांत होते है, लेकिन शायद ही कभी शांत होता है. इसकी पत्तेदार शाखाओं में सैकड़ों बंदर निवास करते हैं, और जो लोग उस स्थान पर प्रार्थना करने आते हैं, उन्हें प्रसाद देते हैं. लेकिन उनका चहकना भी झींगुरों की आवाज में दब जाता है, जो दिन में भी सक्रिय रहते हैं.

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