2,000 रुपये के करेंसी नोट की शुरुआत और अंत—सरकारी भ्रम और विरोधाभासों की कहानी

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा शुक्रवार की घोषणा कि 2,000 रुपये के नोट को बंद कर दिया जाएगा, ने भारत में वर्तमान में मौजूद उच्चतम मूल्यवर्ग के नोट की अक्सर-भ्रमित करने वाली कहानी को समाप्त कर दिया है.

आठ नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट—जो उस समय प्रचलन में करेंसी का 86 प्रतिशत हिस्सा थे—अब चलन में नहीं रहेंगे. इसका एक बड़ा कारण इन उच्च-मूल्य वाले नोटों का उपयोग करके काले धन की कथित जमाखोरी थी.

हालांकि, इस घोषणा के कुछ दिनों बाद, सरकार ने एक और उच्च मूल्यवर्ग का नोट जारी किया—यानी 2,000 रुपये का करेंसी नोट. यह नोट न केवल एक नए आकार में था, जिसका अर्थ है कि देश के सभी एटीएम को फिर से कैलिब्रेट (तैयार) किया जाना था, बल्कि इसके उच्च मूल्यवर्ग को विमुद्रीकरण के मूल उद्देश्य के विपरीत देखा गया था.

दरअसल, 2,000 रुपये के नोट को बंद करने के आरबीआई के फैसले के एक दिन बाद पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार के.वी. सुब्रमण्यन ने शनिवार को ट्विटर पर इस फैसले की प्रशंसा की क्योंकि इस मूल्यवर्ग में कथित रूप से बड़ी मात्रा में नकदी जमा की जा रही थी.

भ्रम की स्थिति यह थी कि सरकार ने दावा किया था कि 2,000 रुपये के नोट में सुरक्षा विशेषताएं हैं जो जालसाजी को रोकेंगी. हालांकि, RBI के आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2020 तक, 2,000 रुपये के नोट मूल्य के हिसाब से सभी नकली नोटों का 45 प्रतिशत से अधिक थे.

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