समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए मा. सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका को निपटाने के लिए जिस प्रकार की जल्दबाजी की जा रही है, वह किसी भी तरह से उचित नहीं है. यह नए विवादों को जन्म देगी और भारत की संस्कृति के लिए घातक सिद्ध होगी.
भारत में “विवाह” का एक सभ्यतागत महत्व है और एक महान और समय की कसौटी पर खरी उतरी, वैवाहिक संस्था को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का, समाज द्वारा मुखर विरोध किया जाना चाहिये। समलैंगिक विवाहों में ये संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं. यदि इसकी अनुमति दी गई, तो कई प्रकार के विवादों को जन्म दिया जाएगा. दत्तक देने के नियम, उत्तराधिकार के नियम, तलाक संबंधी नियम आदि को विवाद के अंतर्गत लाया जाएगा. समलैंगिक संबंध वाले अपने आप को लैंगिक अल्पसंख्यक घोषित कर अपने लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षण की मांग भी कर सकते हैं। भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता पर सदियों से निरन्तर आघात हो रहे हैं, फिर भी अनेक बाधाओं के बाद भी वह बची हुई है। अब स्वतंत्र भारत में इसे अपनी सांस्कृति जड़ों पर पश्चिमी विचारों, दर्शनों एवं प्रथाओं के अधिरोपण का सामना करना पड़ रहा है, जो इस राष्ट्र के लिये व्यवहारिक नहीं है।
वहीं भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नालसा (2014). नवतेज जौहर (2018) के मामलों में समलैगिकों एवं विपरीत लिंगी (Transgender) के अधिकारों को पूर्व से ही संरक्षित किया है। जिससे ये समुदाय, पूरी तरह से उत्पीड़ित या असमान नहीं है, जैसा कि उनके द्वारा बताया जा रहा है। इसके विपरीत भारत की अन्य पिछड़ी जातियां, आज भी जातिगत आधार पर शोषित एवं वंचित हो रही है, जो आज भी अपने अधिकारों के लिये, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को, अपने पक्ष में निर्णित होने का इंतजार कर रही है। ऐसी स्थिति में समान लैगिकों के विवाह को विधि मान्यता दिये जाने की मांग, उनका मौलिक अधिकार न होकर, वैधानिक अधिकार हो सकता है, जो केवल भारत की संसद द्वारा कानून बनाकर ही संरक्षित किया जा सकता है।
उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में हम इस महत्वपूर्ण विषय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिखाई जा रही आतुरता पर अपनी गहन पीडा व्यक्त करते हैं। न्याय की स्थापना एवं न्याय तक पहुंचने के मार्ग को सुनिश्चित करने तथा न्याय पालिका की विश्वनीयता को कायम रखने के लिये, लंबित मामलों को पूरा करने एवं महत्वपूर्ण सुधार करने के स्थान पर एक काल्पनिक मुद्दे पर न्यायालयीन समय एवं बुनियादी ढांचे को नष्ट/ उपयोग किया जा रहा है, जो सर्वथा अनुचित है।
अतएव हम आपसे सविनय निवेदन करते है कि आप उक्त विषय पर सभी हितबद्ध व्यक्तियों/संस्थाओं से परामर्श करने के लिये आवश्यक कदम उठाये और यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर कि समलैंगिक विवाह न्याय पालिका द्वारा वैद्य घोषित नहीं किया जाये, क्योंकि उक्त विषय पूर्ण रूप से विधायिका के क्षेत्राधिकार में आता है।

आवश्यक सूचना:-इस विषय पर ज्ञापन देने के लिए बहने एकत्रित हो रही हैं अतः आप मीडिया सभी मीडिया बंधुओं से अनुरोध है कि समय पर पहुंचकर मीडिया कवरेज करें