‘सपने देखना हमारे लिए बहुत बड़ी चीज है’, दलित मजदूर के बेटे ने पास की UPSC, अब हैं ‘IRS साहब’

सैदपुर: मुक्तेंद्र कुमार अपने सैदपुर गांव के घर में गरमागरम चावलों को खाने के लिए उठाए ही थी कि फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ फोन पर उनके मित्र थे. उनके मित्र ने उन्हें सूचित किया, “आईआरएस साहब, आपने यूपीएससी क्लियर कर लिया है.” यह वह दिन था जिसके लिए वह पिछले तीन साल से पूरी लगन से मेहनत कर रहे थे. 

उस दिन, 23 मई को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक दलित दिहाड़ी मजदूर के 23 वर्षीय पुत्र मुक्तेंद्र के जीवन में राहत नजर आई. इस खुशखबरी के बाद उनका पहला विचार यह आया कि अब उनकी बहन की शादी अच्छे से होगी और टपकती छत को आखिरकार ठीक किया जा सकेगा. 

मुक्तेंद्र ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में 819वीं रैंक हासिल की है, जिससे वह भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में पोस्टिंग के लिए योग्य हो गए हैं.

वह हाल के वर्षों में कठिन यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए अपने अध्ययन माध्यम के रूप में हिंदी का उपयोग करने वाले भारतीयों की बढ़ती संख्या में से एक हैं. दूरस्थ, ग्रामीण और वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों में हिंदी माध्यम का क्रेज बढ़ा है. 

हिंदी में पढ़ाई करने वाले रवि सिहाग ने पिछले साल यूपीएससी की परीक्षा में 18वीं रैंक हासिल की थी, जिससे वह सात साल में शीर्ष 25 में जगह बनाने वाले हिंदी माध्यम के पहले उम्मीदवार बन गए थे. YouTube कोचिंग क्लासेज ने भी मुक्तेंद्र जैसे उम्मीदवारों के लिए UPSC परीक्षा को क्रैक करना किफायती बना दिया है. उनके पिता सतीश कुमार कभी-कभी कोल्हू में काम करते हैं जबकि कभी-कभी ईंट ढोने का काम भी करते हैं. उनका परिवार मुफ्त मासिक सरकारी चावल और गेहूं से अपना भरण-पोषण करता है. 

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