‘वीज़ा संकट, कम छात्रवृति और विरोध’, कैसे साउथ एशियन यूनिवर्सिटी मनमोहन सिंह के सपने से दूर जा रहा है

नई दिल्ली: स्थापना के तेरह साल बाद आज साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (SAU) में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के नामांकन की संख्या में गिरावट देखी जा रही है. इस यूनवर्सिटी की कल्पना पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के सदस्य देशों से आने वाले छात्रों को उन्नत बनाने के लिए एक प्रगतिशील क्षेत्रीय मंच के रूप में की थी. 

नवंबर 2005 में ढाका में 13वें SAARC शिखर सम्मेलन के दौरान इसकी घोषणा की गई थी जबकि इसकी स्थापना 2010 आठ सदस्य देशों- अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की सहमति से की गई थी. SAU अर्थशास्त्र, कंप्यूटर विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी, गणित, समाजशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कानून तथा अन्य विषयों में स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट कार्यक्रम प्रदान करता है. 

यूनिवर्सिटी की लोकप्रिया में गिरावट का प्रमाण इस तरह माना जाता है कि साल 2024 में इस यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए जारी की गई मेरिट सूची में गिरावट देखी गई. छह स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों- जैव प्रौद्योगिकी, कानूनी अध्ययन, गणित, समाजशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और अर्थशास्त्र में प्रवेश के लिए जारी दूसरे राउंड में लिस्ट में सिर्फ भारतीय छात्रों के नाम आते हैं. एकमात्र अपवाद समाजशास्त्र में पीएचडी है, जिसमें एक छात्र नेपाल से और दूसरा बांग्लादेश से मेरिट लिस्ट में शामिल था. 

नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए, SAU से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर रहे भूटान के एक 29 वर्षीय छात्र ने कहा कि उनके दो बैचमेट पिछले साल छात्रों के विरोध प्रदर्शन करने के दौरान बाहर हो गए थे.

उन्होंने कहा, “यहां आने वाले सभी अंतर्राष्ट्रीय छात्र अपने देशों के टॉपर्स हैं. हमें लगता है यहां क्षेत्रीय सहयोग की भावना से यहां हमारे साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाएगा. अब, मैं कम छात्रवृति और प्रशासन के खराब रवैये को देखते हुए अपने देश के किसी भी छात्र को यहां आवेदन करने की सलाह नहीं देता हूं.”

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