मजबूत लोकतंत्र सेम-सेक्स यूनियन को मान्यता देते हैं जबकि सत्तावादी शासन ऐसा नहीं करते हैं

नई दिल्ली: पिछले सप्ताह सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराए गए समान-लिंग विवाहों के लिए कानूनी मान्यता के लिए केंद्र सरकार के विरोध ने भारत के एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय को अधर में छोड़ दिया है, पांच साल बाद देश की शीर्ष अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिक जोड़ों के बीच सहमति से बने यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.

सरकार ने मार्च में दायर एक हलफनामे और मेहता द्वारा मौखिक प्रस्तुतियों के माध्यम से खुलासा किया है कि वह समान-सेक्स विवाहों के समर्थन को ‘मात्र शहरी अभिजात्य दृष्टिकोण’ के रूप में देखती है, जो कहती है कि यह ‘सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार के अनुरूप नहीं है’.

यह विरोध “लोकतंत्र की जननी” के रूप में भारत की छवि के साथ कैसे मेल खाता है? दिप्रिंट ने दि इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के डेमोक्रेसी इंडेक्स 2022 के निष्कर्षों की जांच की और इसे 167 देशों में समलैंगिक यूनियनों की वैधता की स्थिति के साथ मापा किया.

जैसा कि यह पता चला कि अधिकांश मजबूत लोकतंत्र में कानूनी मान्यता के जरिए समान-सेक्स विवाह या नागरिकों का समर्थन किया जाता है, लेकिन ‘पूर्ण या त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ में स्वीकृति में गिरावट आती है और यह ‘हाईब्रिड या सत्तावादी शासन’ की दिशा में जाता है. और देखने में यह मुद्दा ‘पश्चिमी’ संस्कृति से काफी प्रभावित नजर आता है.

वाशिंगटन, डीसी स्थित सीएटीओ संस्थान के रिसर्चर स्वामीनाथन अय्यर कहते हैं, “निरंकुशता, व्यक्तिगत अधिकारों को मौलिक रूप में नहीं पहचानती है. निरंकुश उन सिद्धांतों पर संगठित होते हैं जो उन्हें किसी भी आधार पर भेदभाव करने की अनुमति देते हैं. ऐसे देशों में समलैंगिक अधिकारों की प्रगति स्वाभाविक रूप से धीमी या न के बराबर होगी.”

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें