‘फॉर द वुमेन, बाय द वुमेन’

नई दिल्ली: जब मैं उत्तराखंड के चंपावत जिला के खेतीखान गांव पहुंची तो वहां का नजारा बिलकुल ही अलग था. वहां जिधर देखो महिलाएं सिर्फ और सिर्फ बिनाई करती हुई नजर आ रही थीं. वो सिर्फ खाली समय में नहीं बल्कि चलते- फिरते, पार्टी फंक्शन में भी बुनाई करती हुई नजर आ रही थीं. हर जगह इतनी बुनाई करती हुईं महिलाओं ने मुझे बार बार चौंकाया..आखिर माजरा क्या है.

फिर मैंने इनसे बातचीत की तो पता चला कि ये महिलाएं अपने डेलीरूटीन के काम काज के बीच हर समय बिनाई करती हैं और ठंड में ये स्पीड थोड़ी बढ़ जाती है. लेकिन इन गांव की महिलाओं ने मुझे एक नई राह दिखा दी थी.

उत्तराखंड के चंपावत जिला के खेतीखान गांव में मैं गई तो अपने यूथ फॉर इंडिया फ़ेलोशिप कार्यक्रम के लिए थी लेकिन इस कार्यक्रम के लिए मेरा आइडिया पूरी तरह से फेल हो गया और मुझे वहां तीन महीने रहकर किसी एक और टॉपिक या फिर आईडिया पर काम करना था.

तब खेतीखान की महिलाओं पर केंद्रित होकर ही मैंने काम करने की ठानी. 12 महिलाओं को साथ जोड़कर मैंने ग्रुप बनाया और अपना प्रोजेक्ट शुरू किया. पहले मैंने उनसे बिनाई सीखी और फिर जन्म हुआ कंपनी हिमालय ब्लूम्स का. आज इस कंपनी से 200 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं और इस व्यवसाय को आगे बढ़ा रही हैं. हमारी कंपनी ऊन के खिलौनों से लेकर स्वेटर तक हर वो चीज बना रहीं हैं जो आप सोच सकते हैं.

प्रतिभा कहती हैं, “मैंने अपनी जर्नी 2014-15 में यूथ फॉर इंडिया से शुरू की.”

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