फूल और सब्जियों से बनाए जा रहे हर्बल गुलाल, जैविक रंगों के साथ मनाया जाएगा पर्व

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में इस बार हर्बल गुलाल(Herbal gulal) की भारी डिमांड है। हर वर्ग के लोग भी इस तरफ विशेष ध्यान दे रहे हैं कि उनकी त्वचा को नुकसान न पहुंचे। ऐसे में गरियाबंद की महिलाएं फूल, सब्जी और भाजियों से गुलाल बना रही हैं, जिसे बाजार में भी काफी पसंद किया जा रहा है। यहां लाल भाजी से लाल, पालक से हरा, पलाश से पीला, भेजरी से पर्पल कलर बनाया जा रहा है।

फूल और सब्जियों से बने हर्बल गुलाल

मदनपुर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान के अंतर्गत महिलाएं पालक, चुकंदर, लाल भाजी, पलाश के फूल, गेंदा, गुलाब, धनिया, हल्दी और टमाटर पीसकर हर्बल गुलाल बना रही हैं। रंगों के लिए केमिकल के बजाए प्राकृतिक सब्जियों के कलर का इस्तेमाल रंग और गुलाल बनाने के लिए किया जा रहा है। महिला समूह को डेढ़ क्विंटल गुलाल तैयार करने का ऑर्डर मिला है, जिसे तैयार करने में वे पिछले एक हफ्ते से लगी हुई हैं। प्रति किलो गुलाल तैयार करने में 80 रुपए लगते हैं, जिन्हें बाजार में 140 से 150 रुपए प्रति किलो में बेचा जाएगा।

हर्बल गुलाल में महक के लिए प्राकृतिक फूलों का इस्तेमाल

महिलाओं का कहना है कि उन्होंने कम मूल्य के छोटे पैकेट भी तैयार किए हैं। हर्बल गुलाल की खासियत है कि इसमें केमिकल का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं होता, जिसके कारण कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। हर्बल गुलाल में रंग और महक के लिए प्राकृतिक फूलों का ही इस्तेमाल किया जाता है। स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने अब तक 50 किलो से अधिक हर्बल गुलाल का तैयार किया है। महिलाओं को हर्बल गुलाल की बिक्री के लिए बाजार दिलाने का काम जिला प्रशासन कर रहा है।

महिलाओं ने ये भी कहा कि बिहान से जुड़कर उन्हें स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध हो रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरी है। उन्होंने अपील की है कि इस बार होली को प्राकृतिक रंगों से ही खेलें। मैनपुर की सुरभि और देवभोग के चांद समूह समेत 3 अन्य समूहों ने भी अलग-अलग जगहों पर 1 क्विंटल से ज्यादा हर्बल गुलाल तैयार किया है।

जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा

लाल रंग का गुलाल लाल भाजी से, पालक से हरा रंग, पलाश के फूल से पीला और नारंगी तो भेजरी के फूल से पर्पल रंग का गुलाल तैयार कर मार्केट में इसकी बिक्री शुरू कर दी गई है, जबकि केमिकल युक्त गुलाल दोगुनी कीमत पर मिलता है। हर्बल गुलाल को लेकर जिले में पिछले दो वर्षों से जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है।

केमिकल रंगों के नुकसान

हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है, जो आंखों के लिए खतरनाक है। काले रंग से गुर्दों को नुकसान पहुंचता है। लाल रंग में मरक्यूरिक ऑक्साइड होता है, इससे त्वचा का कैंसर होने खतरा रहता है। सिल्वर रंग में एल्युमिनियम ब्रोमाइड है, जो त्वचा का कैंसर करता है। बैंगनी रंग में क्रोमियम ऑथोडाइड होता है, इससे अस्थमा होने का खतरा रहता है। पीले रंग में ओरमिन होता है, जो एलर्जी करता है। चमकीले रंगों में सीसा होने से स्किन डैमेज होती है।

किडनी और लिवर को पहुंचा सकते हैं नुकसान

केमिकल रंग पेट में जाने से लिवर, फेफड़े और किडनी को नुकसान पहुंच सकता है। ये अस्थमा रोगी के लिए भी नुकसानदायक है। सिंथेटिक रंगों में विभिन्न प्रकार के तेलों का प्रयोग होता है। निकिल, कोबाल्ट, कॉपर, आयरन सॉल्ट में तेल का प्रयोग किया जाता है।

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