पीवी नरसिम्हा राव भारत के ऐसे PM जिसने सबसे ज्यादा अपमान झेला और जानबूझकर उन्हें गलत समझा गया

जिस प्रधानमंत्री से उनके कार्यकाल में मेरी पहली सीधी बातचीत हुई, वे पामुलपर्थी वेंकट नरसिम्हा राव थे. तब तक मैंने ऐसा खास कुछ नहीं किया था कि यह सम्मान हासिल करने का हकदार बन सकूं. 1991 की सर्दियों में काबुल में अफगानिस्तान के तानाशाह नज़ीबुल्लाह ने इंटरव्यू के बीच मेरी कोहनी पर थपकी देते हुए अपने दुभाषिए के मार्फत मुझसे पूछा था, “मुझे बताया गया है कि आप एक अहम शख्स हैं. क्या आप मेरी तरफ से अपने प्रधानमंत्री जनाब नरसिम्हा राव तक एक अहम बात पहुंचा सकते हैं?”

उस समय मैं महज़ एक रिपोर्टर था. मैंने उनसे कहा कि मैं उतना अहम शख्स नहीं हूं, लेकिन नजीब ने कहा, महज़ रिपोर्टर को अफगानी जंग के दौरान साल में पांच बार वहां नहीं भेजा जा सकता. इसके बाद उन्होंने मुझे वो बात बताई, जो वह राव तक पहुंचाना चाहते थे और यह भी कहा कि उन्हें अपने राजदूत पर भरोसा नहीं है. मैंने खुद से कहा, इस बात को अपने पोते-पोतियों को सुनाने के लिए अपनी यादों में दर्ज करके फिलहाल भूल जाओ, लेकिन भारत लौटने के बाद, एक पार्टी में मैंने इसे एक चुटकुले के रूप में एम.जे. अकबर को सुनाया, जो उस समय राव के करीबी थे. उन्होंने हंसते हुए मुझसे कहा कि मैं प्रधानमंत्री को यह बात ज़रूर बता दूं. मैंने भी हंस कर बात खत्म कर दी.

अगली सुबह प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आ गया और उनसे मुलाकात की पेशकश की गई.

राव वहां बैठे थे और किसी बुजुर्ग दादा की तरह दलिया सुड़क रहे थे, जो उनकी गर्दन में लगे नैपकिन पर भी गिर रहा था. मैंने बार-बार माफी मांगते हुए उन्हें उस वाकये, उस संदेश की पूरी कहानी सुना दी कि मैं नहीं जानता कि वहां मेरा क्या काम है, कि नजीब ने इस काम के लिए मुझे क्यों चुना या कि शायद मुझे बेवकूफ बनाया गया है. मैंने कहा, एक रिपोर्टर होने के नाते मैं इस सबमें जोड़े जाने पर अटपटा महसूस कर रहा हूं, सो क्या आप इन बातों को अपने तक ही रखने की कृपा करेंगे?

उन्होंने अपने पेट को तीन बार ठोका, अपनी बांहों को समेटा और मुस्कराते हुए बोले, इसके अंदर जो जाता है वो हमेशा के लिए वहीं रह जाता है.

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