पंजाब में 30 साल में पिता-पुत्र के दो ताबूत, और पीछे सेना के जवान का छूटा एक भरा-पूरा परिवार

मोगा में कुलवंत सिंह के दो मंजिला घर के बाहर सूखी लकड़ियों और खड़खड़ाहट की आवाज़ करने वाले खिलौनों की लड़ियां लटकी हुई हैं. यह परिवार में पुत्र के जन्म का संकेत है. लेकिन इसके बड़े-बड़े कमरे सारी खुशियों से महरूम हैं. महिलाएं बीच-बीच में विलाप कर रही हैं और कुलवंत की पत्नी हरदीप कौर एक कोने में बैठी एकटक देख रही हैं. उसकी 18 महीने की बेटी उस त्रासदी से बेखबर इधर-उधर घूमती है, जिसने परिवार को झकझोर कर रख दिया है और उसका पांच महीने का बेटा एक प्रैम में सो रहा है.

कुलवंत उन पांच सैनिकों में से एक था, जो 20 अप्रैल की दोपहर पुंछ में हुए ग्रेनेड हमले में शहीद हो गए. सेना द्वारा घटनास्थल से उनके परिवार को भेजी गई एक तस्वीर में कुलवंत को ट्रक से कुछ मीटर की दूरी पर मुंह के बल लेटा देखा जा सकता है. उसके पैर जल गए थे और उसके सिर पर घातक चोटें आईं थीं.

मोगा में उनके परिवार को दो बार त्रासदी का सामना करना पड़ा. कुलवंत 1993 में केवल ढाई साल के थे जब उनके पिता बलदेव सिंह की कश्मीर में एक ट्रक के खाई में गिरने से मौत हो गई थी. और अब 32 साल के बेटे की मौत ने उनके परिवार को तोड़ कर रख दिया है.

कुलवंत के साले गगनदीप सिंह ने कहा, “कुलवंत ने अपने परिवार के लिए बहुत सी चीजों की योजना बनाई थी. उन्होंने पहले ही 13 साल की सेवा पूरी कर ली थी और उनके सेवानिवृत्ति को केवल दो साल ही और बचे थे. वह अपने परिवार के साथ घर पर रहना चाहते थे. किसी ने नहीं सोचा था कि उनके साथ ऐसा होगा.”

चरिक गांव में उनकी मां के घर के बाहर, मोगा के आसपास के सेना के दिग्गजों का एक समूह सफेद शर्ट में भाईचारा व एकजुटता दिखाने के लिए साथ बैठा था. वे कहते हैं कि देश के लिए मरना सम्मान की बात है. लेकिन परिवार के लिए दो-दो लोगों की कुर्बानी का दर्द बहुत ज्यादा है.

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