पंजाब की राजनीति के ग्रैंड मास्टर प्रकाश सिंह बादल अपने पीछे एक ऐतिहासिक विरासत छोड़ गए हैं

चंडीगढ़: अपने जीवनकाल के दौरान शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल विभाजन के बाद के पंजाब के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं के न केवल साक्षी थे, बल्कि एक सक्रिय भागीदार भी थे.

इसमें 1950 के दशक का पंजाबी सूबा आंदोलन, भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965, 1971), राज्यों का पुनर्गठन (1966), हरित क्रांति, नक्सली आंदोलन, धर्म युद्ध मोर्चा (1982), ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) शामिल थे. , ऑपरेशन ब्लैक थंडर (1986) और 1980 और 1990 के दशक के उग्रवाद के दो अंधेरे दशकों में भी.

मंगलवार शाम उनके निधन से पंजाब की राजनीति में 70 साल के एक युग का अंत हो गया.

पंजाब के पांच बार के मुख्यमंत्री का 95 वर्ष की आयु में मोहाली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें 16 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उन्हें पिछले साल फरवरी और जून में इसी तरह की शिकायतों के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

बादल पंजाब की धूल भरी देहाती, ग्रामीण राजनीति के पुराने गुरु थे और एक राजनेता के रूप में उनकी सबसे बड़ी ताकत उन लोगों के बीच रहना था, जिनसे वे सत्ता में रहने के दौरान या बाहर रहने के दौरान दिन भर मिला करते थे. लेकिन उनकी सबसे खास बात थी सेल्फ रिस्पेक्ट और ग्रेस था और उनकी मुस्कान के तो सभी कायल थे और उससे प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सकता था. उनके कट्टर आलोचक और विरोधी भी उनके सामने नतमस्तक हो जाते थे.

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