नगर-निकाय चुनाव में अपने सांसदों को चुनावी समर में उतारना भाजपा के लिये हुआ टेढ़ी खीर!

मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के दौरान विभिन्न कारणों से भारतीय जनता पार्टी के कुछ सांसद पार्टी प्रत्याशी के लिये उतना समय नहीं दे पा रहे हैं जितना प्रत्यशियों की मांग है। ये सभी सांसद बहुत हद तक भाजपा नेतृत्व से संतुष्ट नहीं बताये जा रहे हैं। इनको लेकर पार्टी भी बहुत गंभीर नहीं दिखायी दे रही है। संयोग से ये वह सांसद हैं जिनका किसी न किसी कारण सपा की ओर झुकाव होता दिख रहा है। 


पहला पीलीभीत से भाजपा सांसद और पार्टी के पूर्व महामंत्री वरुण गांधी को लेकर है। वरुण लंबे समय से सधी टिप्पणी करके चर्चा में रह रहे हैं। उनके वक्तव्यों को भारतीय जनता पार्टी समर्थक पार्टी विरोधी मानते हैं। लखीमपुर खीरी का किसान आंदोलन हो या भरे मंच से सपा मुखिया अखिलेश यादव का प्रसंसा करने की बात हो वरुण गांधी को वर्तमान में भाजपा से ज्यादा विपक्षी पार्टियों का हितैषी माना जाता है, उनमें समाजवादी पार्टी से ज्यादा नजदीकी दिखाई दे रही है।


दूसरे प्रयागराज (इलाहाबाद) की सांसद रीता बहुगुणा जोशी को लेकर भी भाजपा में चुप्पी बनी हुई है। विधानसभा 2022 में उनका बेटा मयंक बहुगुणा लखनऊ की कैंट विधानसभा से टिकट मांग रहा था। भाजपा नेतृत्व ने उसे टिकट नहीं दिया। जिससे नाराज होकर वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया। रीता बहुगुणा जोशी उसे सपा में जाने से रोक नहीं पायीं। अब रीता बहुगुणा को पार्टी उतना विश्वसनीय नहीं मान रही है जितना 2019 में मानती थी। 2024 के चुनाव में मयंक बहुगुणा यदि भाजपा में वापस हुये तो हो सकता है कि रीता बहुगुणा का टिकट बच पाये नहीं तो नगर निकाय चुनाव में सक्रियता व अन्य मामलों में उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया जाय।


तीसरे कैसरगंज के सांसद बृजभूषण शरण सिंह को लेकर समय-समय पर सवाल उठते हैं। विकास की योजनाओं के क्रियान्वयन में सरकारी महकमे से जुड़े लोगों निशाना बनाते-बनाते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाने से उनके टिकट पर भी खतरा मंडराने लगा है। महिला पहलवानों द्वारा जिस तरह उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दो-दो प्राथमिकी दर्ज हो गयी उससे बृजभूषण के चेहरे पर पार्टी के प्रति गुस्सा साफ देखा जा सकता है। यही नहीं उनके खिलाफ धरने पर बैठे पहलवानों व खिलाड़ियों से जिस तरह विपक्षी दल के नेता लाइन लगा कर समर्थन कर रहे हैं और भाजपा नेतृत्व चुप्पी साधे हुये है उससे भी बृजभूषण अपनी पार्टी से नाराज हैं।यही नहीं रेलवे और साई के खिलाड़ी धरने पर बैठे केंद्र सरकार के अधीन रेल मंत्रालय ने उन खिलाड़ियों से कोई आपत्ति नहीं दर्ज करायी उससे भी बृजभूषण अपने नेतृत्व से नाराज हैं। इस बीच उन्होंने रविवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव की प्रसंसा कर दिया वह कोढ़ में खाज का काम कर दिया है।


चौथी सांसद मेनका गांधी हैं। जो सीधे अपनी पार्टी पर कभी हमला तो नहीं कीं लेकिन पार्टी पर हमलावर सांसद बेटे को रोकने का कोई दिखायी देने वाला प्रयास नहीं किया। जिससे पार्टी नेतृत्व यह यकीन करे कि मेनका गांधी ने वरुण पर कोई अंकुश लगाने की कोशिश की हैं। मेनका अपने संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर में लगातार सक्रिय रहती हैं। लेकिन नगर-निकाय चुनाव में अभी तक पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में जूझते नहीं दिखी हैं। हालांकि उनकी पार्टी निष्ठा पर अभी तक किसी ने भी संदेह नहीं व्यक्त किया है। लेकिन जिस तरह से छोटे कद और छोटे मन के लोगों का भाजपा में दबदबा बढ़ा है उससे मेनका गांधी का भाजपा से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना कठिन डगर होगा।

कानपुर के सांसद सत्यदेव पचौरी अपनी बेटी के लिये मेयर का टिकट मांग रहे थे। उनकी बेटी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बड़े वोहदेदार की बहू है। फिर भी उनकी बेटी को मेयर का टिकट नहीं मिला। बताते हैं कि पार्टी के निर्णय से पचौरी इतने नाराज हुये कि उन्होंने प्रेस में जाकर कह दिया कि यह संघ का अपमान है। भाजपा नेतृत्व द्वारा 2024 में उन पर 75 प्लस होने का बता कर लोकसभा टिकट काटने का लगभग तय माना जा रहा है। यही नहीं उनके स्थान पर पार्टी के भीतर उनके धुर विरोधी कहे जाने वाले विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना का नाम प्रचारित किया जा रहा है। कानपुर में भाजपा नेताओं में जो चर्चा है उसके अनुसार जब सतीश महाना लोकसभा चुनाव जीत जायेंगे तो उनकी विधानसभा सीट पर उनका बेटा लड़ेगा। जिसको लेकर कार्यकर्ता दो खेमों में बंट गये हैं। यह बुढ़ापे में उनके सैय्यम की परीक्षा होगी।

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