दिल्ली पब्लिक स्कूल में EWS छात्रा ने कैसे दौड़ को बनाया अपनी सफलता का रास्ता

दिल्ली 2011 में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम लागू करने वाले पहले राज्यों में से एक था, जिसके तहत निजी स्कूलों को कक्षा 1 से 8 तक के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के छात्रों को अपनी 25 प्रतिशत सीटें मुफ्त में आवंटित करने के लिए बाध्य किया गया था. हालांकि, दिल्ली के संभ्रांत निजी स्कूलों में ईडब्ल्यूएस छात्रों के अनुभव मिले-जुले रहे हैं. यह तीन-भागों की सीरीज़ का तीसरा हिस्सा है जो इन छात्रों की भिन्न वास्तविकताओं को दिखाएगा.

नई दिल्ली: जब वे महज़ 14 बरस की थी, तब मेघा रावत को एक गंभीर अहसास हुआ. डिफेंस कॉलोनी के पॉश साउथ दिल्ली पब्लिक स्कूल में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) की छात्रा के रूप में, उसके पास अपने पढ़े-लिखे सहपाठियों की तरह करियर विकल्पों पर विचार करने के लिए “समय निकालने की लक्जरी” नहीं थी. इसके बजाय, उसे स्कूल के ठीक बाद अपने माता-पिता की मदद करने के लिए जल्द से जल्द कोई रास्ता तलाशना था.

मेघा ने कहा, “मेरे साथियों जैसे महंगे कोर्स को आगे बढ़ाने के लिए पैसा खोजना मेरे लिए कोई विकल्प नहीं था, इसलिए मुझे तत्काल उपलब्ध संसाधनों से ही संतुष्ट होना पड़ा. हालांकि, मेरे स्कूल के कर्मचारी और दोस्तों ने मेरी मदद की, लेकिन अंततः मुझे अपनी वित्तीय स्थिति में अंतर के बारे में मालूम था.”

तभी से उसने एथलेटिक्स के लिए अपने टैलेंट को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया और अपने फिजिकल एजुकेशन टीचर के नेतृत्व में ट्रैक-रनिंग के लिए खुद को समर्पित कर दिया.

उनकी कोशिशें रंग लाईं. अब 18 साल की मेघा जोनल स्प्रिंट चैंपियन हैं, हरियाणा के सोनीपत में अशोका यूनिवर्सिटी में पार्ट-टाइम एथलेटिक्स इंस्ट्रक्टर हैं और कॉलेज जाने वाली पहली पीढ़ी की छात्रा हैं, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस में बीए इंग्लिश ऑनर्स की पढ़ाई कर रही हैं.

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