गुरु ग्रंथ साहिब की पांडुलिपियां, राज्य के रिकॉर्ड से लेकर फुलकारी डिजाइन तक

चंडीगढ़: 20 अप्रैल, 2003 को, इतिहास के जुनून के साथ दो लोग पंजाब के इतिहास को डिजिटल रूप से संग्रह और सूचीबद्ध करने के मिशन पर निकल पड़े.

दोनों के पास 3.2-मेगापिक्सल के डिजिटल सोनी कैमरा और एक डेस्कटॉप कंप्यूटर ही था. दविंदर पाल सिंह और हरिंदर सिंह पुरानी पांडुलिपियों, तस्वीरों और चित्रों को खींचा करते थे, और निजी संग्रहकर्ताओं को उन ऐतिहासिक वस्तुओं को थोड़े समय के लिए मांग लिया करते थे ताकि वे तस्वीरें ले सकें.

उस समय लगभग बिना बजट के काम करते हुए, दोनों ने दविंदर पाल के घर पर दुकान ली और जहां भी उन्हें काम मिला, वे न केवल अपने कैमरे बल्कि एक भारी कंप्यूटर मॉनीटर और सीपीयू को राज्य के पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर गर्मी हो या बरसात या फिरा ठंड सभी मौसम में ले कर घूमते रहे.

लगातार ही हमें न ही सुनने को मिलता था लेकिन हम डटे रहे, दविंदर पाल अब “इतिहास और इसके संरक्षण के लिए शुद्ध जुनून” के रूप में वर्णित करते हैं.

हरिंदर अब चले गए हैं, लेकिन जिस संगठन की उन्होंने सह-स्थापना की थी, वह काफी बढ़ गया है. आज, पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी (पीडीएल) का चंडीगढ़ के सेक्टर 28 में एक ऑफिस है, जिसमें सौ से अधिक लोगों का स्टाफ है – जिसमें फुल टाइम वॉलेंटियर के साथ पटियाला में एक टीम भी शामिल है.

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