गरीबों को सपने बेचता है केरल का लॉटरी बाज़ार, महत्वाकांक्षा और लत को दे रहा है बढ़ावा

पिछले 15 साल से सत्यपाल श्रीधर ने केरल में हर लॉटरी टिकट का डिजाइन तैयार किया और उनमें सुरक्षा कोड लगाए है. वो राज्य के लॉटरी घोटालों के लिए जवाबदेह हैं.

मेज पर बिखरे रंगीन कागज़ों के बीच एक मैग्निफाइंग ग्लास पड़ा हुआ है, जहां एडोब फोटोशॉप के साथ एक बड़ा कंप्यूटर है. श्रीधर का करियर केरल में लॉटरी की बढ़ती उपस्थिति के ईर्द-गिर्द घूमता है.

साल भर में 7 साप्ताहिक टिकट और पांत बंपर ड्रॉ राज्य में दैनिक आधार पर लॉटरी चलाई जाती है. 2007 में जब श्रीधर एक ग्राफिक डिजाइनर के रूप में शामिल हुए, तो लॉटरी विभाग बढ़ते घोटालों से निपटने के लिए संघर्ष कर रहा था. चार साल बाद, उन्होंने इन मामलों को अपने हाथों में लिया और सुरक्षा उपाय लागू करना शुरू किया. अब, तिरुवनंतपुरम में लॉटरी के डायरेक्टर के कार्यालय के ठीक बगल में उनकी अपनी सिक्योरिटी डिजाइन लैब है.

केरल में मूल रूप से राज्य के राजस्व को बढ़ाने के मकसद से शुरू की गई लॉटरी इसका एक अमिट हिस्सा बन गई है. आर्थिक और शाब्दिक रूप से यह इतना महत्वपूर्ण बन गया है कि यहां हर 50 मीटर पर एक लॉटरी की दुकान देखी जा सकती है.

केरल में एक व्यक्ति के पास रंगीन लॉटरी टिकट | फोटो: वंदना मेनन/दिप्रिंट

कागज़ पर किस्मत बेचने के इस धंधे को राज्य में अच्छी तरह से भुनाय जा रहा है. लॉटरी डिपार्टमेंट के मुताबिक, केरल सरकार प्रतिदिन 1.8 करोड़ से अधिक टिकटों की छपाई करती है.

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