क्यों सिलिकॉन वैली बैंक डूबने से भारत को चिंता करने की जरूरत नहीं है, लेकिन इससे कुछ सीखना जरूरी

10 मार्च को, मुख्यत: स्टार्ट-अप पर केंद्रित ऋणदाता सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से अमेरिका में डूबने वाला सबसे बड़ा बैंक बन गया. प्रौद्योगिकी क्षेत्र में मंदी और रिकॉर्ड उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए फेडरल रिजर्व की तरफ से लागू की गई कड़ी मौद्रिक नीतियां बैंक के डूबने की मुख्य वजह रहीं.

महामारी के दौरान बैंक ने तमाम स्टार्ट-अप और वेंचर कैपिटल फर्म की तरफ जमा राशि का भारी प्रवाह देखा. और बड़े पैमाने पर जमा धनराशि का निवेश उसने अमेरिका की दीर्घकालिक सरकारी प्रतिभूतियों में कर दिया. वैसे तो ये निवेश आम तौर पर सुरक्षित होते हैं लेकिन उच्च ब्याज वाले मौजूदा माहौल में इन निवेशों का मूल्यांकन नीचे आ गया—यूएस फेडरल रिजर्व ने 450 आधार अंकों के साथ ब्याज दर में व्यापक स्तर पर वृद्धि कर दी है.

एसवीबी का जमाकर्ता आधार काफी हद तक स्टार्ट-अप और अन्य-प्रौद्योगिकी केंद्रित कंपनियां थीं. सार्वजनिक प्रस्तावों के जरिये वेंचर कैपिटल फंडिंग का अकाल पड़ने पर ये कंपनियां फंड के लिए हाथ-पांव मार रही थीं, और तब उन्हों अपनी जमाराशि का इस्तेमाल करना शुरू किया. ऐसे में बड़े पैमाने पर जमा राशि की निकासी शुरू हुई तो एसवीबी को अपनी बॉन्ड होल्डिंग बेचने की जरूरत पड़ी. इसलिए, जब बैंक ने बॉन्ड बेचने शुरू किए, तो उसे मार्क-टू-मार्केट लॉस झेलना पड़ा क्योंकि यील्ड वृद्धि के साथ मौजूदा बॉन्ड की कीमतें गिर गई थीं.

चित्रण: रमणदीप कौर | दिप्रिंट

बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने शेयरधारकों को एक पत्र भेजा कि उसे 21 अरब डॉलर के अमेरिकी ट्रेजरी बांड की बिक्री पर 1.8 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है और साथ ही शेयर बिक्री के माध्यम से अतिरिक्त पूंजी जुटाने की योजना की रूपरेखा तैयार की.

पत्र की वजह से अफरा-तफरी की स्थिति बन गई और वेंचर कैपिटल फर्मों ने अपना पैसा निकालना शुरू कर दिया. चूंकि ये कॉरपोरेट डिपॉजिट थे, इसलिए उन्होंने 250,000 डॉलर की डिपॉजिट इंश्योरेंस लिमिट पार कर ली. 42 बिलियन डॉलर की निकासी, जो एक दिन में बैंक की कुल जमा राशि की एक चौथाई थे—ने बैंक को अपने दायित्वों के पालन में असमर्थ बना दिया. और उसमें नकदी संकट उत्पन्न हो गया.

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