कैसे युवा लड़कों का जीवन छीन रही जेनेटिक बीमारी DMD, उदासीन सरकार से पीड़ित परिवारों की गुहार

नई दिल्ली: “आप दूसरे बच्चों को आम लोगों की तरह बढ़ते हुए देख रहे हो और आपके खुद के बच्चे को करवट तक लेने के लिए मदद की ज़रूरत पड़ती हो, ये मुझे हर दिन कचोटता है,” राजस्थान के करौली जिले से आई 40-वर्षीय विधवा मां पूजा, जिनका 6 साल का बच्चा एक ऐसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है, जिसका दुनियाभर में अभी तक कोई इलाज नहीं है.

एक अन्य पिता और प्रमुख समाचार चैनल में काम करने वाले 50-वर्षीय बालकृष्ण ने कहा, “हम जिस चीज़ से गुज़रते हैं, उसके लिए दर्दनाक मामूली शब्द है. माता-पिता अपने बच्चों के बड़े होने पर उनके भविष्य के बारे में सोचते हैं, बात करते हैं. हमारे घर में कोई इस बारे में बोलता तक नहीं है.”

कृष्णा और पूजा राजस्थान, कर्नाटक, पंजाब और छत्तीसगढ़ सहित 21 राज्यों के लगभग 500 माता-पिता में से हैं, जो जीन में गड़बड़ी की वजह से होने वाली दुर्लभ जेनेटिक बीमारी ‘ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ (डीएमडी) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शुक्रवार को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित एक रैली में शामिल होने आए थे.

भारत में पैदा होने वाले प्रत्येक 3500 पुरुषों में से एक लड़का डीएमडी के साथ पैदा होता है, हालांकि, लड़कियों में ये बीमारी बहुत कम होती है, जबकि लड़कों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है.

सरकारी अनुमानों के अनुसार, भारत में इस जेनेटिक बीमारी से पीड़ित प्रत्येक 10 बच्चों में से 8 की मृत्यु 20 वर्ष की आयु तक हो जाती है. यह बीमारी एक डायस्ट्रोफिन जीन के कारण होती है, जो शरीर में एक महत्वपूर्ण डायस्ट्रोफिन प्रोटीन के उत्पादन को रोक देती है.

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