ओडिशा ट्रेन दुर्घटना के शिकार लोगों के परिवार बीते 6 दिनों से अपनों की तलाश में बेताब

कटक/भुवनेश्वर: हंसराज कुमार प्लास्टिक के स्टूल पर बैठकर एलईडी स्क्रीन पर उड़ीसा ट्रेन हादसे के शिकार लोगों की तस्वीरें देख रहे हैं. वे अपने 22-वर्षीय बेटे की तलाश कर रहे हैं, जो कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार था, जो 2 जून को दो अन्य ट्रेनों से जुड़ी दुर्घटना का शिकार हो गई. उस दुर्घटना में मरने वालों की आधिकारिक संख्या 288 है, जिसमें 87 शव का अभी भी पता लगाया जाना बाकी है.

उन्होंने एम्स भुवनेश्वर में दिप्रिंट से कहा, “मैंने इसे अब भगवान पर छोड़ दिया है. मैं सुबह से फोटो देख रहा हूं…कोई इन लोगों को पहचान सकता है क्या? शव इतने क्षत-विक्षत हैं कि पहचान में नहीं आ रहे हैं…मुझे नहीं पता कि मेरा बेटा कहां है. यहां तक कि अगर वे मर भी गया है, तो मैं उसके शरीर की पहचान कैसे करूंगा?.”

उनका बेटा हरदेव कुमार (22), पश्चिम बंगाल के शालीमार से पिछले शुक्रवार दोपहर तीन अन्य लोगों के साथ एक्सप्रेस ट्रेन में सवार हुआ. झारखंड के दुमका के ये निवासी, काम की तलाश में चेन्नई जा रहे थे.

हंसराज ने कहा, “हमने उसे गांव छोड़ने से रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने नहीं सुनी,” कुमार याद करते हैं जो घातक दुर्घटना के बाद से मुश्किल से सो पाए हैं. परिवार पहले बालासोर गया, लेकिन वहां हरदेव का पता नहीं चल सका. इसके बाद वे भुवनेश्वर आ गए. हंसराज ने बताया, “चार में से केवल दो शव बरामद किए गए हैं.”

अस्पताल में मुर्दाघर के बगल में एक विशेष हेल्प डेस्क स्थापित किया गया है. ओडिशा में दुर्घटना में मारे गए लोगों की तस्वीरों वाली सर्पिल बाउंड बुक के अलावा, मृतकों और सौंपे गए शवों की अलग-अलग सूची भी रखी जाती है.

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