इंडिया-अमेरिका व्यापार संबंध गहरा हो रहा है, पर मोदी को संरक्षणवादी नीतियों में ढील देना पड़ सकता है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की आधिकारिक यात्रा भारत-अमेरिका आर्थिक जुड़ाव को गहरा करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है. जबकि पिछले कुछ वर्षों में, बढ़ता व्यापार और पूंजी प्रवाह भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों को दर्शाता है, चीन की कार्रवाइयों के बारे में उनकी सामान्य चिंता उनके आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को और मजबूत कर सकती है.

व्यापार के मोर्चे पर, दोनों देशों को व्यापार विविधीकरण पहल से लाभ होगा. भारत, चीन के साथ अपने जोखिम को कम करने के लिए अमेरिका के साथ अपने व्यापार संबंधों को गहरा करने का प्रयास करेगा. जबकि अमेरिका के साथ भारत व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) की स्थिति में है, चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और इसके व्यापार घाटे का मुख्य स्रोत है.

अमेरिका के लिए, भारत व्यापार के विशाल अवसर प्रदान करता है, क्योंकि यह सबसे बड़े उपभोक्ता बाजारों और सबसे तेजी से बढ़ती बाजार अर्थव्यवस्था में से एक है. चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका भी भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहेगा.

अमेरिकी क्षेत्र में चीन के जासूसी गुब्बारे और ताइवान के प्रति अमेरिका के बढ़ते समर्थन के कारण दोनों महाशक्तियां कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आमने-सामने आ गई हैं.

भारत-अमेरिका मर्केंडाइज़ ट्रेड

अमेरिका के लिए भारत का आउटबाउंड शिपमेंट तेज गति से बढ़ रहा है. 2009-10 में अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. यह 2019-20 में बढ़कर 17.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 2022-23 में 28.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

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