आगरा के सदियों पुराने फुटवियर उद्योग पर लटक रहा है क्वालिटी कंट्रोल का खतरा, नए नियमों से छाई है बेचैनी

मशीनों की खड़खड़ाहट, हथौड़ों के तेज़ होती आवाज़ और चमड़े और गोंद की गंध आगरा के दशकों पुराने फुटवियर उद्योग पर हावी है. जब से सरकार ने फुटवियर उद्योग में नियमों और मानकों को लाने की बात की है तब से स्मॉल स्केल इंडस्ट्री की हवा में बेचैनी छाई हुई है.

आगरा में हर कोई फुटवियर बनाने या उसका धंधा करने में माहिर है. लेकिन वे अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि 1 जुलाई से लागू होने वाले नए नियमों के तहत डेली और फैशन फुटवियर को कैसे शामिल किया जाएगा. जैसे-जैसे समय सीमा नज़दीक आ रही है, वैसे-वैसे गड्ढों वाली गलियों और खुली नालियों के इर्द-गिर्द जूते, बैग, जैकेट और बेल्ट से सजी दुकानों में बस एक ही सवाल सभी के मन में हैं.

आगरा का फुटवियर उद्योग, जिसकी जड़ें 16वीं शताब्दी के मुगल भारत से जुड़ी हैं, हर दिन 1.5 लाख जोड़ी जूते का उत्पादन करता है. यह लगभग 30,0000 स्वतंत्र शू-मेकर्स का एक संपन्न केंद्र है जिसमें 60 संगठित और 3,000 छोटे पैमाने की इकाइयां शामिल हैं. 1885 तक, आगरा फुटवियर का एक प्रमुख केंद्र बन गया था और ब्रिटिश सरकार में अधिकारियों के लिए जूते बनाने के लिए अपना पहला मैकेनाइज्ड कारखाना मिला. उद्योग- पर दलितों और मुस्लिम श्रमिकों का वर्चस्व है और यह पहले नाम के आधार पर और निर्माण की छोटी कुटीर इकाइयों पर चलता है जो अब बदलने के लिए तैयार है क्योंकि केंद्र सरकार गुणवत्ता नियंत्रण शुरू करना चाहती है और भारत में बने जूतों के लिए एक भारतीय मानक निर्धारित करना चाहती है.

वैश्विक बाजार में भारत के फुटवेयर उद्योग को बढ़ाने की सरकार की योजना दांव पर लगी है. भारत के चमड़े के उत्पादों और फुटवियर उद्योग का मूल्य लगभग 12 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है, और तैयार चमड़े, चमड़े के उत्पादों और फुटवियर का वार्षिक निर्यात भी बढ़ रहा है और 2022-23 में 5 बिलियन डॉलर को पार करने की उम्मीद है. भारत दुनिया में फुटवियर का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, और अंतरराष्ट्रीय फुटवियर बाजार में इसका 2 प्रतिशत हिस्सा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2030 तक इसे बढ़ाकर 10 फीसदी करने की योजना है.

और यही वह जगह है जहां गुणवत्ता नियंत्रण और मानकीकरण मुख्य रोल निभाता है, विशेष रूप से खेल के जूते के लिए, जो उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि निर्यात के लिए क्षमता उच्चतम है. लेकिन यह सस्ता नहीं होगा, फ्रेटरनिटी ऑफ आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स (एफएएफएम) के अध्यक्ष कुलदीप सिंह ने चेतावनी दी है. उनका अनुमान है कि नए मानकों का पालन करने की कुल लागत प्रति निर्माता 20-25 लाख रुपये आएगी, जिसमें आवेदन, ऑडिट, नमूना परीक्षण, लाइसेंस की स्थापना और मार्केटिंग फीस और परीक्षण केंद्रों की स्थापना शामिल है.

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